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आ नो॑ गो॒त्रा द॑र्दृहि गोपते॒ गाः सम॒स्मभ्यं॑ स॒नयो॑ यन्तु॒ वाजाः॑। दि॒वक्षा॑ असि वृषभ स॒त्यशु॑ष्मो॒ऽस्मभ्यं॒ सु म॑घवन्बोधि गो॒दाः॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

ā no gotrā dardṛhi gopate gāḥ sam asmabhyaṁ sanayo yantu vājāḥ | divakṣā asi vṛṣabha satyaśuṣmo smabhyaṁ su maghavan bodhi godāḥ ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

आ। नः॒। गो॒त्रा। द॒र्दृ॒हि॒। गो॒ऽप॒ते॒। गाः। सम्। अ॒स्मभ्य॑म्। स॒नयः॑। य॒न्तु॒। वाजाः॑। दि॒वक्षाः॑। अ॒सि॒। वृ॒ष॒भ॒। स॒त्यऽशु॑ष्मः। अ॒स्मभ्य॑म्। सु। म॒घ॒ऽव॒न्। बो॒धि॒। गो॒ऽदाः॥

ऋग्वेद » मण्डल:3» सूक्त:30» मन्त्र:21 | अष्टक:3» अध्याय:2» वर्ग:4» मन्त्र:6 | मण्डल:3» अनुवाक:3» मन्त्र:21


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है।

पदार्थान्वयभाषाः - हे (वृषभ) बलवान् (मघवन्) बहुत श्रेष्ठ धन से युक्त ! जिससे आप (गोदाः) वाणी आदि के दाता (सत्यशुष्मः) सत्य बलवाले (असि) हैं इससे (अस्मभ्यम्) हम लोगों के लिये (सु) (बोधि) आनन्ददायक हूजिये हे (गोपते) भूमि के स्वामी जैसे (अस्मभ्यम्) हम लोगों के लिये (सनयः) संविभाग करने के योग्य (दिवक्षाः) विज्ञानरूप प्रकाश आदि से पूरित (वाजाः) विज्ञान और अन्न आदि के प्राप्त करानेवाले व्यवहार (सम्) (यन्तु) प्राप्त होवें वैसे ही आप (नः) हम लोगों के (गोत्रा) कुलों और (गाः) पृथिवियों को (आ) सब प्रकार (दर्दृहि) अत्यन्त वृद्धि कीजिये ॥२१॥
भावार्थभाषाः - इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है। जो सत्य आचरण करनेवाले विद्वान् लोग मनुष्यों के उपदेशकारक होवें, तो उन जनों का कुछ भी सुख अप्राप्त और अरक्ष्य न होवे ॥२१॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनस्तमेव विषयमाह।

अन्वय:

हे वृषभ मघवन् ! यतस्त्वं गोदाः सत्यशुष्मोऽसि तस्मादस्मभ्यं सुबोधि। हे गोपते यथाऽस्मभ्यं सनयो दिवक्षा वाजाः संयन्तु तथैव त्वं नो गोत्रा गाश्चा दर्दृहि ॥२१॥

पदार्थान्वयभाषाः - (आ) समन्तात् (नः) अस्माकम् (गोत्रा) गोत्राणि कुलानि (दर्दृहि) अत्यन्तं वर्धय (गोपते) भूपते (गाः) पृथिवीः (सम्) (अस्मभ्यम्) (सनयः) संभक्तयः (यन्तु) प्राप्नुवन्तु (वाजाः) विज्ञानान्नादिप्रदा व्यवहाराः (दिवक्षाः) ये दिवं विज्ञानप्रकाशादिकमक्षन्ति व्याप्नुवन्ति (असि) (वृषभ) बलिष्ठ (सत्यशुष्मः) सत्यबलः (अस्मभ्यम्) (सु) (मघवन्) बहुपूजितधनयुक्त (बोधि) (गोदाः) यो गा वाण्यादीन् ददाति सः ॥२१॥
भावार्थभाषाः - अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः। यदि सत्याचारसुशीला विद्वांसो मनुष्याणामुपदेष्टारः स्युस्तर्हि तेषां किमपि सुखमप्राप्तमरक्षणीयं न स्यात् ॥२१॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. जे सत्याचरणी विद्वान माणसांना उपदेश करतात त्यांना कोणतेही सुख दुर्मिळ नसते. ॥ २१ ॥